शेयर बाजार में डिलिस्टिंग क्या है और डिलिस्टिंग के प्रभाव What is Delisting and Effects of Delisting

शेयर बाजार में डिलिस्टिंग क्या है और डिलिस्टिंग से क्या प्रभाव होता है । 

शेयर बाजार में आने के लिए कंपनी अपना IPO लेकर आती है ।

IPO में कंपनी अपने शेयर स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से शेयर धारको को बेचती है और उनसे मिले पैसे का उपयोग कंपनी के काम मे लगती है । 

इसी तरह से जब कोई कंपनी शेयर बाजार से निकलना चाहती है तो वह डिलिस्टिंग करती है । 

डिलिस्टिंग (असूचीबद्ध होना ) की परिभाषा Defination of Delisting


शेयर बाजार में सूचीबद्ध किसी भी कंपनी के द्वारा अपनी सिक्योरिटी या शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज से वापस निकाल लेने को डीलिस्टिंग कहते हैं । डिलिस्टिंग होने के बाद में उस कंपनी के शेयरों में किसी भी प्रकार की ट्रेडिंग यानी कि खरीददारी या बिकवाली नहीं होती है । 


तो इस तरह से आप देख सकते हैं कि डीलिस्टिंग तब होती है जब एक सूचीबद्ध कंपनी स्टॉक एक्सचेंज से अपने ट्रेड की जाने वाले शायरों हटा लेती है या फिर डिलीट कर देती है ।


शेयर बाजार में डिलिस्टिंग क्या है और डिलिस्टिंग के प्रभाव What is Delisting

शेयर बाजार में डिलिस्टिंग क्या है और डिलिस्टिंग के प्रभाव What is Delisting


आमतौर पर डिलिस्टिंग निम्नलिखित में से किसी भी कारण से हो सकता है ।  जब कोई कंपनी अपने संचालन को रोक देती है या अन्य कंपनी में मर्ज हो जाती है यानी मिल जाती है , विस्तार या पुनर्गठन की तरफ जाती है , दिवालियापन घोषित कर देती है , निजी बनना चाहती है या फिर लिस्टिंग की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हो जाती है ।


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अगर किसी भी कंपनी को स्वेछिक तरीके से डिलिस्टिंग होना है तो वह अपने निवेशकों को उनके शेयरों के लिए पैसे का भुगतान करती है और एक्सचेंज से अपने स्टॉक को वापस ले लेती है । यदि कंपनी स्टॉक एक्सचेंज के नियमों का पालन नहीं कर पाती है तो भी स्टॉक एक्सचेंज कंपनी को डीलीस्टिंग करने के लिए मजबूर कर सकता है । आसान शब्दों में अगर बात की जाए तो डीलिस्टिंग का मतलब स्टॉक एक्सचेंज में स्थाई रूप से शेयरों को हटा देना होता है ।


डीलिस्टिंग के प्रकार 

शेयर बाजार में डीलिस्टिंग दो प्रकार की होती है।

पहला वैलंट्री डीलिस्टिंग, 

दूसरा कंपलसरी डीलिस्टिंग ।


स्वैच्छिक डीलिस्टिंग

कई बार कोई कंपनी अपनी इच्छा से स्टॉक एक्सचेंज से डीलिस्टिंग होना चाहती है ।

ज्यादातर समय में कंपनी ऐसा तब करती है जब वह मर्ज हो रही है या एक्विजिशन कर रही है या फिर उसको प्राइवेट कंपनी बनने में ज्यादा फायदा हो रहा हो । 


भारत में वेदांता इसका प्रमुख उदाहरण है जो कि पिछले कई समय से डीलिस्टिंग होकर प्राइवेट कंपनी बनने की कोशिश कर रही है ।


स्वेच्छिक डीलिस्टिंग में कंपनी अपने शेयरधारकों को शेयर की प्राइस और उसके अलावा कुछ प्रीमियम भी भुगतान करती है । इससे शेयरधारकों को बहुत फायदा होता है । ऐसे समय में कंपनी ओपन मार्केट से या फिर शेयर धारको से अपने शेयर खरीदकर कंपनी को प्राइवेट बना देती है ।


अनैच्छिक डीलिस्टिंग या कंपलसरी डीलिस्टिंग 


अनैच्छिक डीलिस्टिंग तब होती है जब एक कंपनी  या तो स्टॉक एक्सचेंज के नियमों का उल्लंघन करती है अथवा वह न्यूनतम विधि अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल हो जाती है । 

इसका मतलब यह है कि किसी शेयर की कीमत बहुत कम हो जाती है या फिर उसके वित्तीय अनुपात बहुत गड़बड़ आ जाते हैं । या फिर उस शेयर में ट्रेडिंग  बहुत कम हो जाती हैं जिसके कारण से वह कंपनी चल पाने में असक्षम हो जाती है ।

 तो ऐसी सिचुएशन में स्टॉक एक्सचेंज इस कंपनी को नियमों की अनुपालन नहीं करने की चेतावनी जारी कर देते है । फिर भी अगर कंपनी इस समस्या का समाधान नहीं करती तो स्टॉक एक्सचेंज कंपनी की लिस्टिंग को डिलीट कर देती हैं या  डीलिस्टिंग कर देती है ।



डीलिस्टिंग का प्रभाव


अगर कोई कंपनी डीलिस्टिंग हो रही है तो यह शेयरधारकों को कई तरीके से प्रभावित करती है।


अगर कंपनी स्वेच्छिक डीलिस्टिंग कर रही है यानी कि अपने आप अपनी इच्छा से बाजार से शयरो को हटाती है । तो शेयर धारकों को उस शेयर को वापस करने के लिए कंपनी शेयर के प्रीमियम के ऊपर कुछ एक्स्ट्रा पैसे देकर शेयरधारकों को भुगतान करती है । जिससे शेयर धारक वह शेयर कंपनी को दे देते हैं । और कंपनी एक्सचेंज से अपने उन शयरो को हटा देती है ।


डीलिस्टिंग इस तरह की तभी मानी जाती है जब कंपनी के पास अपने शेयरों का 90 परसेंट या उससे ज्यादा हिस्सा आ जाता है ।


डीलिस्टिंग कभी भी अचानक नहीं होती है । इसके लिए कंपनी अपने शेयरधारकों को एक पर्याप्त समय देती है ।


और उस समय में निवेशक के पास डीलिस्टिंग के लिए अप्लाई करने का ऑप्शन होता है । 


दूसरी तरफ अगर कोई कंपनी  फोर्स्ड डीलिस्टिंग या अनैच्छिक डिलिस्टिंग होती है  तो ऐसी स्थिति में कंपनी के जो निवेशक शेयर बेच पाते है सिर्फ वह शेयर धारक पैसे अपने खाते में प्राप्त कर पाते हैं ।  अन्यथा शेयर उनके खाते में पड़े ही रहते हैं लेकिन क्योंकि उन शेयरों की ट्रेडिंग नहीं हो रही है तो उनका कोई फायदा शेयरधारकों को नहीं होता है ।


कंपनी के निवेशकों के पैसों का क्या होगा 


अब आपको यह जानकर खुशी होगी कि जब भी कोई भी कंपनी शेयर बाजार से डी लिस्ट होती है तो उससे पहले निवेशकों को 1 महीने से ज्यादा का समय दिया जाता है इस समय के दौरान उस कंपनी के शेयर या तो आप बाजार में बेच सकते हैं या फिर प्रमोटर को बेच सकते हैं । इस तारीख की घोषणा आपको अखबार और मीडिया के द्वारा दी जाती है और यह जानकारी हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में दी जाती है । इसमें डीलिस्टिंग की पूरी जानकारी जैसे  डी लीस्टिंग होने वाली कंपनी का नाम , स्टॉक एक्सचेंज जहां से रिलीज होने वाली है,  फ्लोर प्राइस आदि निर्धारित की जाती है ।


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किस भाव पर शेयर बेचे ।

निवेशकों को डीलिस्टिंग की प्रक्रिया निश्चित होने वाली फाइनल प्राइस पर ही अपने शेयर बेचने होते हैं । फाइनल प्राइस होने के लिए कुछ इस प्रकार की प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है ।

  • सबसे पहले उस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से डिलिस्टिंग के लिए अप्रूवल लेना पड़ता है ।
  • इस मीटिंग में उस कंपनी के शेयर की फ्लोर प्राइस तय होती है ।
  • फिर कंपनी को एक्सचेंज से डिलिस्टिंगके लिए परमिशन लेनी पड़ती है ।
  • स्टॉक एक्सचेंज से मंजूरी मिलने के बाद कंपनी डीलिस्टिंग के बारे में अनाउंसमेंट करती है ।
  • इसमें निवेशकों को किस तारीख से किस तारीख तक शेयर बेचने के लिए बोली लगानी है उसकी पूरी जानकारी दी जाती है ।
  • इस प्रक्रिया में जिस नाम पर सबसे ज्यादा बिड आती है वही डीलिस्टिंग की फाइनल प्राइस होती है। 
  • अगर प्रमोटर को वह प्राइस मंजूर है तो कब तक शेयर धारक अपने शेयर प्रमोटर को बेच सकते हैं इसकी अनाउंसमेंट की जाती है ।
  • लेकिन अगर प्रमोटर को वह प्राइस मंजूर नहीं हो तो डिलिस्टिंग नहीं हो सकती ।
  • अब कंपनी निवेशकों को बिडिंग के लिए एक महीने का समय देती है ।
  • इसके अलावा अगर बिडींग के समय के दौरान बहुत ही कम बिडिंग है तो भी वह कंपनी डिलीट नहीं हो सकती । 
  • आपके जैसे मैंने बताया कि 90 परसेंट से ज्यादा कंपनी के पास शेयर होंगे तभी वह कंपनी डिलिस्टिंग हो सकती है ।



अगर उस 1 महीने में शेयर नहीं बेच पाए तो क्या होगा

अगर आप किसी वजह से कंपनी के द्वारा दिए गए 1 महीने में अपने शेयर नहीं बेच सके तब भी आपके पास 1 साल का समय होता है इस एक साल में आप कभी भी अपने शेयरों को उस कंपनी के प्रमोटर्स को बेच सकते हैं । और कंपनी के  प्रमोटर्स को उन शयरो  को आवश्यक रूप से खरीदना ही पड़ेगा । 


अगर आप 1 साल में भी अपने शेयर बेचने से चूक जाते हैं तब आप उस हालात में आप कंपनी  में शेयर धारक तो रहेंगे मगर आप उस शेयर को सीधा स्टॉक एक्सचेंज में नहीं बेच सकते हैं । उसे बेचने के लिए आप या तो किसी अन्य खरीदार को ट्रांसफर कर सकते हैं । या फिर उस कंपनी की फिर से लिस्टिंग होने की राह देख सकते हैं । लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वह कंपनी फिर से कभी जिंदगी में लिस्ट हो । इसलिए सबसे अच्छी सलाह और सबसे अच्छा रास्ता यही है कि कंपनी के द्वारा दिए गए 1 महीने के समय के अंदर ही अपने शेयरों को बेच दे ।


डिलिस्टिंग से फायदा होता है या नुकसान

 किसी भी कंपनी के डिलिस्टिंग से फायदा भी हो सकता है  ओर नुकसान भी हो सकता है । यह पूरी गणित निर्भर करता है कि निवेशक वह शेयर किस प्राइस में खरीदे हैं । अगर आपने फ्लोर प्राइस से कम में शेयर खरीदे हैं तो फायदा होगा । और अगर आपकी बाइंग प्राइस फ्लोर प्राइस से ज्यादा है तो आपको नुकसान भी हो सकता है। 


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अंतिम निष्कर्ष 

तो आज आपने जाना कि कि आपने देखा कि शेयर बाजार में डिलिस्टिंग क्या है और डिलिस्टिंग के क्या प्रभाव होते है । शेयर बाजार से किसी भी कंपनी के द्वारा अपने शेयरों को हटा लेने को डिलिस्टिंग कहते हैं । और कंपनी स्वेच्छिक या फिर अस्वेच्छिक अर्थात कंपलसरी डीलिस्टिंग करवा सकती है । और स्वैच्छिक डिलिस्टिंग में कंपनी के शेयरधारकों को ज्यादा फायदा होता है । डीलिस्टिंग तभी होती है जब कंपनी के पास कुल शेयरों का 90 परसेंट या उससे ज्यादा शेयर मिल जाते हैं । उम्मीद करता हूं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी ।


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